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Saturday, May 9, 2015

मेरी वसीयत तुम्हारे नाम -


उन गेंदे के फ़ूलों में मिल जायेगी झलक मेरी
सूखे फ़ूलों को मंदिर से उठा कर डाला था जहां
तब तो मुरझा कर धरती में समां गए थे वे फ़ूल
यकीं है नयी ज़िन्दगी का संचार करते होंगे अब वहाँ

हाथों से रोम्पी थी कुछ आँगन की मिट्टी
अभी भी मेरी उँगलियों के निशाँ पाओगे वहाँ कहीं
नयी तुलसी फ़ूट पड़ी होगी उसी कोने में फ़िर
मौसम के साथ बूढी हो दे जायेगी बीज अपना

चमेली के झाड़ पर लगी होंगी कलियाँ फ़िर से
अपनी हलकी खुशबू से महकाती होंगी घर भर को
तुलसी के पत्तों के साथ जोड़ कर माला बुन देना कभी
हो जाएगा श्रृंगार छोटे बाल गोपाल का मेरे उस से

सहेज कर कुछ यादें रखी थीं उस अलमारी में
कुछ पैगाम जो मेरे नाम मिल जाएँगे वहीँ कहीं
गीली न करना आँखें अपनी, उन यादों में खो कर
सुकून दिया था उन लिखी पंक्तियों ने मुझे बहुत कभी

रखा था एक संदूक भी उसी अलमारी में ऊपर
छोटी बड़ी चीज़ें रखती थी तुम्हारे लिए जिसमें
जैसा भी है दे देना उसे जगह अपने पास में ही
कभी खाली न पाओगे उस संदूक को तुम अब भी कभी

लिखा था कुछ थोड़ा बहुत मनन करने के लिए अपने
वास्तव में जीवन दर्शन छुपा है उनमें ही कहीं
ले जा सकते हो तो ले जाओ, साथ मेरे आशीर्वाद के
जब भी पढोगे, पाओगे मेरा प्रतिबिम्ब उन सब में भी

वह कोना जहाँ बीत गए ज़िन्दगी के कई सावन
हो सके तो सूना न होने देना उस कोने को तुम कभी
मेरी भक्ति की शक्ति है उस जगह पर समायी
जो तुम्हारे लिए बरसेगी सदा आशीष बन कर

मेरे जीवन का मकसद था तुम से, पूरा हुआ है जो अब
आशा है लगे हो तुम अपने जीवन के मकसद की राह पर
जी जान लगा देना जो निर्धारित है तुम्हें कर्म
और समर्पित कर देना उस ईश्वर के चरणों में सब

माँ थी तुम्हारी, माँ रहूँगी सदा
वह जगह कभी रिक्त न होगी रहा यह वादा
मेरा अंश है तुम में कैसे बदल सकता है यह
जब भी मन से पुकारोगे पाओगे अपने पास तुम

Godrej Expert

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