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Tuesday, April 12, 2016

कविता : गति

एक और मील का पत्थर राह बदलने का संकेत या आशंका
कौन सी राह से जुड़ना है निश्चित जो बनेगी तक़दीर
कुछ राहें, कुछ मोड़, तय हो जाता जीवन का पूरा सफर
बदल जाता मकसद, बदल जाता नज़ारा और नजरिया

कुछ अपने, बहुत अपने कि जिनसे अपना कोई हो न सके
छोड़ देते साथ, हमेशा के लिए, करके सबको अलविदा
उस समय से दूरी बढ़ती रही जब साथ था उनका साथ
लम्हें तब्दील हुए दिनों में और दिन सालों में

वक़्त घाव भर देता है, कहते हैं सब, सुनते हैं हम
पर कटा हिस्सा कभी वापिस नहीं आता, यह जानते हैं हम
कमी उसकी खलती है कभी ज़्यादा कभी कम, पर हर दम
कैसा होता आज अगर होते वो भी साथ, सोचते हैं हम

समय कभी थमता नहीं, काम कोई भी रुकता नहीं
निरन्तर गति ही जीवन का है पर्याय, और उसकी नियती भी
पर एक टीस मन में चुभती है जब याद आते हैं वो पल
जब हम भी कभी अमीर थे, उन रिश्तों के साथ से

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