Wednesday, July 15, 2015

सीख लिया है मैंने भी अब खाना बनाना

सीख लिया है मैंने भी अब खाना बनाना
पहचानने लगी हूँ हर मसाले की खुशबू को मैं भी
सब्ज़ी का ताजापन भी अपना एहसास कराने लगा है I
कुछ ऐसी चीज़ें जो पहले महत्त्वहीन सी लगतीं,
अब पता चल गया है उनका स्वभाव मुझे भी I
लुप्त रह कर किसी की जान कैसे बना जाता है
बोध कराया हैं इन्हीं छोटी छोटी चीज़ों ने मुझे I

धनिया पुदीना जो पहले एक से जान पड़ते थे
आज पता है कितने स्वाद के भण्डार समेटे हैं ये I
खाना बनाना और फिर उसे अपनों के लिए परोसना
सच में एक अनुपम सुख देता है यह एहसास
इस भावना को जीना भी तो तुमसे ही सीखा है
जाने अनजाने आ जाती हो मेरी आँखों के सम्मुख
सम्बोधित करके मुझे दिखा जाती हो राह सही सी

सीख लिया है मैंने भी अब खाना बनाना
पर मन में कसक सी होती है उस महक की
जो आती थी तुम्हारी बनाई रसोई से सदा
वही सब चीज़ें तो हैं अब भी, यहां भी
मसाले भी दो ज़्यादा ही होंगे,  कम नहीं
पर क्यों एक कमी सी रह जाती है सब में फिर भी
क्यों नहीं मिलता वह स्वाद वही रस

शायद हाथों का ही जादू होगा उस स्वाद में कहीं
प्यार का ही रूप होगा उस महक में रचा-बसा
स्नेह से बना कर बिठा कर खिलाती थीं तुम
तब समझ नहीं पायी कैसा संतोष पाती थीं तुम
आज भी वह चेहरा आँखों में समाया रहता है
काश एक बूँद और मिल जाए उस ममता के सागर से
काश उस महक में बिता सकूँ दो पल फिर से कभी I

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